तुम अपने अंदर के विशाल समुद्र में डूबे रहो .. और वाह्य विश्व के संपर्क कपाट बंद करे रखो !!
संसार में रहकर संसार को अपने अंदर मत घुसने दो .. तब तुम पाओगे कि धीरे धीरे संसार की परतें तुम्हारे ऊपर से हटने लगी हैं और तुम्हारी मौलिकता को तुम अपने अंदर कई दशकों से प्रतीक्षा करती हुई पाओगे .. बस यही एक चीज है जिसे तुम्हें इसके मौलिक रुप में विकसित करना है .. फिर तुम एक अद्वितीय मन , अद्वितीय शरीर व अद्वितीय व्यक्तित्व प्राप्त कर पाओगे !!
स्वस्थ रहें , मस्त रहें !!”